नींद आँखों से उड़ी और मैं शब भर जागा तू न आया न कभी मेरा मुक़द्दर जागा बे-सबब आँखों में तूफ़ाँ नहीं मचला करते ठेस कुछ दिल पे लगी है कि समुंदर जागा दौड़ कर उस के बहारों ने क़दम चूम लिए ले के अंगड़ाई जो वो हुस्न का पैकर जागा मेरी हर शब इसी उम्मीद में कट जाती है वो अभी आया अभी मेरा मुक़द्दर जागा फिर मिरे दिल का लहू रिसने लगा आँखों से फिर सर-ए-शाम तिरी याद का नश्तर जागा ज़ुल्फ़ चेहरे से हटी चाँद घटा से निकला चाँदनी फैल गई रात का मंज़र जागा जिस पे ठहरी है नज़र उस को दिए हैं जौहर छू लिया हम ने जिसे 'शाद' वो पत्थर जागा