सो गया क़ब्र में मुँह ढाँप के सोने वाला उम्र भर रोता रहे अब कोई रोने वाला टूट जाता है तो रो देता है रोने वाला क्यों बनाता है खिलौने ये खिलौने वाला जिन के आँगन में नहीं कोई भी रोने वाला उन घरों से भी गुज़रता है खिलौने वाला उस की मर्ज़ी है वो मुख़्तार है जो चाहे करे मेरी मर्ज़ी से कहीं कुछ नहीं होने वाला मेरे आ'माल की गठड़ी तो मिरे सर होगी है कोई बोझ मिरे नाम का ढोने वाला फिर नहीं रखता ख़बर अपनी न दुनिया का ख़याल जुस्तुजू में तिरी जब खोता है खोने वाला एक भी अश्क अगर चश्म-ए-नदामत में नहीं कौन फिर दामन-ए-इस्याँ का है धोने वाला जुस्तुजू करते रहो ख़ैर की उम्मीद रखो 'शाद' हो जाएगा जो काम है होने वाला