नींद ज़रा सी जब भी आने लगती है याद तुम्हारी शोर मचाने लगती है साथ मिलाते हैं आवाज़ परिंदे भी हवा मुझे जब गीत सुनाने लगती है देख के खिड़की से बारिश को पागल लड़की आज भी दो कप चाय बनाने लगती है साँप मुझे अब अक्सर ऊपर खेंचता है सीढ़ी जब भी मुझे गिराने लगती है कमरे में ज़ंजीर से जकड़ी तन्हाई डाइन बन के मुझ को खाने लगती है पिछले चेहरों को दफ़ना के मिट्टी में आँख नया इक अक्स उगाने लगती है कच्चे पक्के आम सहम से जाते हैं जब भी चिड़िया शाख़ हिलाने लगती है उस की आँख में आँखें डाल के देखना तुम दुनिया कैसे आँख चुराने लगती है हाथ में ले कर सूरज का नारंजी एल्बम शाम वो फोटो किसे दिखाने लगती है दरवाज़े पे आन रुके बाराती तब दुल्हन इक तस्वीर जलाने लगती है मुझ को पास बिठा के माँ की ख़ामोशी सारे दिल के राज़ बताने लगती है मेरे आँचल पे सत-रंगी किरनों से रौशनी कोई फूल बनाने लगती है