निय्यत अगर ख़राब हुई है हुज़ूर की गढ़ लो कोई कहानी हमारे क़ुसूर की क्यूँ दिल की आग ले न ख़बर दूर दूर की कौंदी है हर दिमाग़ में बिजली फ़ुतूर की हर ज़ुल्म पर किया है ज़माने से एहतिजाज कुछ भी न बन पड़ा तो मज़म्मत ज़रूर की ता'मीर का तो वक़्त है तख़रीब का जुनूँ अब भी है आदमी को ज़रूरत शुऊ'र की ऐ शाम-ए-ग़म की गहरी ख़मोशी तुझे सलाम कानों में एक आई है आवाज़ दूर की होश उड़ गए तो होश हक़ीक़त का आ गया मूसा की बे-हिसी में तजल्ली थी नूर की कहता है इंक़लाब ज़माना जिसे 'फ़लक' इक दुनिया मुंतज़िर है उसी के ज़ुहूर की