नियत भाँपने का हुनर जानता है मिरा यार पढ़ना नज़र जानता है ज़बरदस्ती अंजान है बन रहा वो मिरा हाल-ए-दिल सर-बसर जानता है पता तो हैं आदाब-ए-इश्क़ उस को लेकिन हाँ इतना है कुछ मुख़्तसर जानता है बड़ी ख़ूबियों वाला है चारागर वो मुदावा-ए-दर्द-ए-जिगर जानता है मुझे बंदगी का सबक़ मत पढ़ाओ कहाँ झुकना है मेरा सर जानता है अकेला निकल कर हुआ क़ाफ़िला इक कुछ ऐसा वो फ़न्न-ए-सफ़र जानता है हर इक ग़म का अंदाज़ जैसे जहाँ में फ़क़त मेरा ही एक घर जानता है शिफ़ायाब किस की दुआ से हुआ हूँ ये रब या दुआ का असर जानता है गुज़ारी है उम्र उस ने बे-ख़ौफ़ हो कर मगर कैसा होता है डर जानता है