नोचती हैं मुझे कर्ब की च्यूंटियाँ साक़िया साक़िया तल्ख़ियाँ तल्ख़ियाँ मैं कहाँ आ गया हर तरफ़ है यहाँ बद-गुमाँ साअ'तों का भयानक धुआँ हैं ये अन्फ़ास या है पपीहे की रट फेंक आऊँ समाअ'त को जा कर कहाँ एक लम्हा अज़ल एक लम्हा अबद सिर्फ़ दो साअ'तों की है ये दास्ताँ मैं वो ईज़ा-कश-ए-फ़िक्र हूँ आज तक जो उड़ाता रहा अपनी ही धज्जियाँ सब दलीलें हैं मक्कार चेहरे पढ़ो जिन पे होने की झुंझलाहटें हैं अयाँ मिल गई मुझ को ठंडी नदामत शिकस्त काश मिल जाए अब मंज़िल-ए-राएगाँ जिस्म की ऊँची दीवार आ फाँद कर कुछ तो कामिल करें क़िस्सा-ए-ख़ूँ-चकाँ जब भी चाहा कोई नज़्म उस पर लिखूँ ख़ुद-ब-ख़ुद थरथराने लगीं उँगलियाँ अब है ये हाल तन्हाई ख़ुद चीख़े है अल-हफ़ीज़ अल-हफ़ीज़ अल-अमाँ अल-अमाँ मैं समुंदर से अपने तक़ाबुल में गुम चंद बच्चे थे चुनते रहे सीपियाँ शादी 'हमदून' है क़ुर्बतों की जज़ा हर क़दम हादसे हर नफ़स इम्तिहाँ