नूर से लाख इख़्तिलाफ़ करो अज़्मत-ए-मह का ए'तिराफ़ करो देखना हो जो हुस्न ग़ैरों का अपनी आँखों से गर्द साफ़ करो दैर-ओ-मस्जिद में क्या मिलेगा तुम्हें कूचा-ए-यार का तवाफ़ करो ज़िंदगी में किसे मिला है सुकूँ ग़म से डर कर न एतकाफ़ करो सोज़-ए-ग़म का वक़ार है तुम से आँसुओं से न तर ग़िलाफ़ करो सैकड़ों ज़ख़्म हैं मिरे दिल पर अब तो यारो मुझे मुआ'फ़ करो मस्लहत-केश वक़्त है 'वाहिद' अपनी फ़ितरत के तुम ख़िलाफ़ करो