नूर-ए-ईमाँ को बढ़ाओ तो कोई बात बने अपने बातिन को सजाओ तो कोई बात बने इल्म की शम्अ जलाई है बहुत लोगों ने ज़ुल्मत-ए-जहल मिटाओ तो कोई बात बने हासिदों को कभी ख़ुश होने का मौक़ा न मिले उन को तुम ख़ूब जलाओ तो कोई बात बने सख़्त दुश्वार है ये राह-ए-मोहब्बत का सफ़र उस पे ख़ुद चल के दिखाओ तो कोई बात बने दिल किसी का भी दुखाना नहीं अच्छा होता रोते लोगों को हँसाओ तो कोई बात बने इल्म है जिन का फ़क़त लफ़्ज़-ओ-बयाँ तक महदूद बा-अमल उन को बनाओ तो कोई बात बने हुस्न-ए-अख़्लाक़ की तासीर यक़ीनी है 'अज़ीज़' इस से दुश्मन को दबाओ तो कोई बात बने