सारी बातें ख़्वाब की ता'बीर से मिलती तो हैं मेरी तहरीरें तिरी तस्वीर से मिलती तो हैं वो सहर की दिलकशी हो या शफ़क़ की सुर्ख़ियाँ कुछ न कुछ ये आप की तस्वीर से मिलती तो हैं अहल-ए-सर्वत आज भी लर्ज़ां हैं जिन के नाम से मुश्किलें वो सब हमें तक़दीर से मिलती तो हैं ये हक़ीक़त है अयाँ तारीख़ के औराक़ से ज़िंदगी की रिफ़अतें ज़ंजीर से मिलती तो हैं सर-बुलंदी कामयाबी राहतें आज़ादियाँ आज भी ये जौहर-ए-शमशीर से मिलती तो हैं तिश्ना-लब रक्खा था जिस ने असग़र-ए-मासूम को ख़ून की बूँदें हमें उस तीर से मिलती तो हैं जिन में 'नुसरत' एक मुद्दत हम भटकते ही रहे ज़ुल्मतें वो आज की तनवीर से मिलती तो हैं