पाबंदी-ए-राहत मुझे मंज़ूर नहीं है मैं ख़ुश हूँ कि फ़ितरत मिरी मजबूर नहीं है बालीं पे ज़िया-ए-रुख़-ए-पुर-ए-नूर नहीं है अब कोई इलाज-ए-दिल-ए-रंजूर नहीं है अब कोई जगह हुस्न से मामूर नहीं है इस दिल के सिवा और कोई तूर नहीं है करना जो पड़े मिन्नत-ए-अग़्यार अजब क्या ये भी मिरी तक़दीर से कुछ दूर नहीं है मैं ने जो कहा जीता हूँ उम्मीद-ए-वफ़ा पर फ़रमाया ज़माने का ये दस्तूर नहीं है मरने की तमन्ना हो कि जीने की हो ख़्वाहिश इक बात भी मेरी नहीं मंज़ूर नहीं है हम दैर से होते हुए ऐ शैख़ चलेंगे इस राह से का'बा भी कोई दूर नहीं है ओ बुत तिरा पत्थर का कलेजा भी हो पानी अल्लाह की क़ुदरत से ये कुछ दूर नहीं है पैमाना भरे देती हैं साक़ी की निगाहें वो आँख नहीं आज जो मख़मूर नहीं है क्या रोज़ दिखाता है न जाने ये दिल-ए-ज़ार अब तक तो 'शमीम' आप का मशहूर नहीं है