ज़ख़्म-ए-पैकान-ए-सितम लाएक़-ए-इज़हार नहीं हम को मंज़ूर इलाज-ए-दिल-ए-बीमार नहीं दिल मिरा देख के कहते हैं कि दरकार नहीं ये भी इक हुस्न-ए-तलब है कि तलबगार नहीं इक वफ़ा है कि उन्हें याद दिलाती है मिरी इक यही बात है जिस से उन्हें इंकार नहीं माइल-ए-शौक़-ए-असीरी है रिहाई क्या है वो भी आज़ाद नहीं है जो गिरफ़्तार नहीं बे-नियाज़ी की अजब शान है अल्लाह अल्लाह उस की दुनिया है जो दुनिया का तलबगार नहीं क़ैद-ए-हस्ती से रिहा होता है तेरा वहशी साँस ज़ंजीर है उस का भी रवादार नहीं आतिश-ए-इश्क़ में जलने को हुआ हूँ पैदा एक ज़र्रा भी मिरी ख़ाक का बेकार नहीं चश्म-ए-साक़ी के इशारों पे निगाहें रक्खे मय-कदे वालों में इतना कोई हुशियार नहीं बंद की आँख तो फिर हम हैं न दुनिया है 'शमीम' सफ़र-ए-मंज़िल-ए-हस्ती कोई दुश्वार नहीं