पड़े हुए हैं मिरे जिस्म ओ जाँ मिरे पीछे है एक लश्कर-ए-ग़ारत-गिराँ मिरे पीछे पस-ए-वफ़ात ये बे-दस्तख़त मिरी तहरीर नहीं है और कोई भी निशाँ मिरे पीछे मिरे मुलाज़िम ओ ख़रगाह अस्प और शतरंज सब आएँ नज़्म से मातम-कुनाँ मिरे पीछे गुज़र रही है अंधेरे में उस बदन पर क्या न खुल सकेगी यही चीसताँ मिरे पीछे उठी हुई मिरे सर पर अज़ल से है तलवार खिंची हुई है अबद से कमाँ मिरे पीछे घिरा हुआ हूँ जनम-दिन से इस तआक़ुब में ज़मीन आगे है और आसमाँ मिरे पीछे