पड़े जो काम तो दिल से किसी का साथ न दे वो आदमी नहीं जो आदमी का साथ न दे चराग़ वो है अँधेरों को जो करे रौशन वो क्या चराग़ है जो रौशनी का साथ न दे चमन में अब तो ये हालत है हम-नशीनों की कि जैसे कोई क़फ़स में किसी का साथ न दे अंधेरा छा नहीं सकता कभी उजाले पर तुम्हारी ज़ुल्फ़ अगर तीरगी का साथ न दे ख़ुदा करे ओ मिरे दिल को तोड़ने वाले तिरा शबाब तिरी नाज़ुकी का साथ न दे ग़म-ए-ज़माना से टकरा सके ये ना-मुम्किन अगर शराब मिरी ज़िंदगी का साथ न दे अगर कहीं उन्हें बे-पर्दा देख ले 'अनवर' यक़ीं है चाँद कभी चाँदनी का साथ न दे