पढ़ रहा हूँ निसाब हो जैसे उस का चेहरा किताब हो जैसे यूँ बसर कर रहा हूँ दुनिया में ज़िंदगानी अज़ाब हो जैसे शाख़-ए-क़ामत पे वो हसीं चेहरा एक ताज़ा गुलाब हो जैसे यूँ वो रहता है मेरी आँखों में मेरी आँखों का ख़्वाब हो जैसे वो मिरे बख़्त के ख़ज़ीने में गौहर-ए-ला-जवाब हो जैसे उस की हस्ती किताब-ए-हस्ती का इक हसीं इंतिसाब हो जैसे ज़हर-आलाम दिल के साग़र में इक पुरानी शराब हो जैसे झूट अब बोलते हैं लोग ऐसे ये भी कार-ए-सवाब हो जैसे रेग-ए-दश्त-ए-ख़याल में 'शाहिद' याद उस की सराब हो जैसे