पागल ज़िद्दी और दीवाना कौन कहे तेरे बिन मेरा अफ़्साना कौन कहे यूँ कितने ही मुझ को अपना कहते हैं पर मुझ को जाना-पहचाना कौन कहे आँखों आँखों जिस की सूरत रहती हैं उस को लफ़्ज़ों में बतलाना कौन कहे याद में जिस की आँखें झरने हो बैठीं उस बादल का घर आ जाना कौन कहे आँखें मूँदूँ खुल खुल जाएँ फिर सपना उस ज़िद्दी का हक़ जतलाना कौन कहे 'तपिश' तुम्हें मक़्ते में लाना मुश्किल है बारिश में जज़्बे सुलगाना कौन कहे