पए-गुनाह है तेरी पनाह की तख़सीस कि है तुझी पे हर इक दाद-ख़्वाह की तख़सीस जो आप समझे हैं मुजरिम हमें तो कुछ नहीं डर कि की है आप ही ने दो गवाह की तख़सीस फ़िराक़-ए-यार में बे-रोए बन नहीं पड़ती असर के वास्ते कर दी है आह की तख़सीस न दिल चुराते हमारा न तुम ख़जिल होते पए-हिजाब है नीची निगाह की तख़सीस दिखावे और कोई अपना यार ज़ोहरा-जबीं जो आसमाँ नहीं उस रश्क-ए-माह की तख़सीस पहुँच ही जाते कभी फिर फिरा के दर पे तिरे ये तू ने काहे को की एक राह की तख़सीस तमाम ख़ल्क़-ए-ख़ुदा तुझ को चाहने लगती लगा न देता अगर तू पनाह की तख़सीस वो मुझ से कहते हैं तुम चाहते नहीं मुझ को मिरे डुबोने को करते हैं चाह की तख़सीस है तेरी ज़र्रा-नवाज़ी की ये दलील अदना कि आसमाँ के है हम-राह जाह की तख़सीस