पहचान का असासा वो जब हार आएगा चेहरे नए ख़रीदने बाज़ार आएगा रंगों के क़ाफ़िले नहीं अब मेरे हम-सफ़र हमराह एक बर्ग-ए-अज़्ज़ा-दार आएगा नामूस-ए-सुब्ह-ए-कर्बला अपनी रिदा सँभाल चल कर अभी तो शाम का दरबार आएगा दीवार ओ दर में देर से सरगोशियाँ सी हैं फ़ातेह क़बीलों का कोई सरदार आएगा मफ़्तूह बस्तियों पे है यलग़ार की घड़ी गलियों में एक लश्कर-ए-जर्रार आएगा मैं संग-ए-रह नहीं जो उठा कर तू फेंक दे मैं ऐसा मरहला हूँ जो सौ बार आएगा बच्चे जवान हो गए ना-ताक़ती के साथ कब बाज़ुओं में ज़ोर-ए-अलम-दार आएगा