पहले अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू आए फिर कोई उन के रू-ब-रू आए तेरी याद आई इस तरह ऐ दोस्त तेरी ज़ुल्फ़ों की जैसे बू आए मुझ को बे-साख़्ता हँसी आई हादसे जब भी रू-ब-रू आए जल रहे हैं चराग़ पलकों पर ऐसे आलम में काश तू आए ढूँडने तुझ को तेरे कूचे में कितने ही अह्ल-ए-जुस्तुजू आए पाकी-ए-ज़ेहन-ओ-दिल ही सब कुछ है वैसे कितने ही बा-वज़ू आए बे-ग़रज़ तेरे दर पे कौन आया सब असीरान-ए-आरज़ू आए मिल गई है निगाह साक़ी से दौर में साग़र-ओ-सुबू आए डूब कर तेरी याद में 'अख़्तर' हर बुलंदी को हम भी छू आए