निगाहों ही निगाहों में इशारे होते जाते हैं वो अब आहिस्ता आहिस्ता हमारे होते जाते हैं जो ज़ाहिर हुस्न के रंगीं नज़ारे होते जाते हैं निगाह-ए-शौक़ में वो और प्यारे होते जाते हैं ख़ुदा रक्खे हवादिस को तलातुम को मसाइब को हमारी ज़िंदगानी के सहारे होते जाते हैं तुम्हारे ग़म ने ऐसा एहतिराम-ए-ग़म सिखाया है कि दुनिया भर के ग़म सारे हमारे होते जाते हैं तसल्ली भी बड़ी मुश्किल से मिलती है तसव्वुर में ग़लत-फ़हमी सलामत वो हमारे होते जाते हैं जहाँ सोज़-ए-ग़म-ए-फ़ुर्क़त फ़ज़ा-ए-दिल को झुलसा दे वहाँ ख़ुश-रंग आँसू भी शरारे होते जाते हैं तिरे जलवों ने ऐसी तर्बियत दी है निगाहों को नज़र में जज़्ब अब सारे नज़ारे होते जाते हैं गुदाज़-ए-क़ल्ब की दौलत अता की है मोहब्बत ने बहुत शाइस्ता तेरे ग़म के मारे होते जाते हैं कोई शय जल रही है ग़ालिबन सीने में ऐ 'अख़्तर' कि मेरे शबनमी आँसू शरारे होते जाते हैं