पहले लगा था हिज्र में जाएँगे जान से पर जी रहे हैं और वो भी इत्मिनान से दोनों को जोड़े इश्क़ की नाज़ुक सी डोर थी अफ़्सोस वो भी टूट गई खींच-तान से फिर दरमियाँ बचेगा जो वो इश्क़ ही तो है दुनिया अगर निकाल दें हम दरमियान से इज़हार करते रहते हैं वैसे तो कितने लोग अच्छा लगेगा पर मुझे तेरी ज़बान से अव्वल तो क़ाएदे से वहाँ हम ही आते दोस्त उस ने मगर निकाल दिया इम्तिहान से मेरा ही हक़ मिला मुझे एहसान की तरह उस ने मुआ'फ़ी माँग ली लेकिन गुमान से