पहले से ग़म-ए-इश्क़ ही ख़ुद्दार न कर दे उन को निगह-ए-शौक़ जो हुशियार न कर दे ख़ुद हसरत-ए-सज्दा को गुनाहगार न कर दे वो सज्दा जो हर दर को दर-ए-यार ना कर दे सय्याद रिहा करने से इंकार ना कर आज कल कोई रिहा होने से इंकार न कर दे अल्लाह तू ग़फ़्फ़ार है बख़्शेगा ख़ताएँ क़िस्मत कहीं बंदों को गुनाहगार ना कर दे