आख़िर अश्कों में एक अंदाज़-ए-पयाम आ ही गया ज़ब्त-ए-ग़म अल्लाह रक्खे ये भी काम आ ही गया ले के मंज़िल पर मुझे शौक़-ए-तमाम आ ही गया आज उन से भी बिछड़ने का मक़ाम आ ही गया गाहे-गाहे आह कर लेना भी काम आ ही गया कम से कम तेरे हवा-ख़्वाहों में नाम आ ही गया जितनी जो पीता हो पी ले दौर-ए-जाम आ ही गया क़द्र-दान-ए-हर-तमाम-ओ-ना-तमाम आ ही गया हाए दुज़दीदा-निगाहों में वो रंग-ए-इल्तिफ़ात उस ने जो भेजा न था वो भी पयाम आ ही गया गो रहा शर्मिंदा-ए-एहसास रंज-ए-तिश्नगी फिर भी लुत्फ़-ए-इंतिज़ार-ए-दौर-ए-जाम आ ही गया हिम्मत-ए-परवाज़ ये भी कामयाबी कम नहीं गो चमन तक मैं न पहुँचा ज़ेर-ए-दाम आ ही गया