पहले तो जाँचता हूँ तुम्हारी नज़र को मैं फिर देखता हूँ ग़ौर से अपने जिगर को मैं अब दिल का ग़म उठाऊँ कि रोऊँ जिगर को मैं मश्कूक पा रहा हूँ किसी की नज़र को मैं सुन कर नवा-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत की इल्तिजा लो छेड़ता हूँ आज रबाब-ए-असर को मैं तेरी तरह करूँगा गरेबाँ को चाक-चाक देता हूँ ये पयाम तुलू-ए-सहर को मैं जिस रहगुज़र पे इश्क़ के आँसू ढलक पड़े हसरत से तक रहा हूँ उसी रहगुज़र को मैं रहबर बना था वादी-ए-ग़ुर्बत में जो कभी मंज़िल पे ढूँढता हूँ उसी राहबर को मैं जिस से हुसूल-ए-ऐश-ओ-मसर्रत मुहाल है सुनता हूँ फ़र्त-ए-यास से ऐसी ख़बर को मैं माना कि अपने दिल पे मुझे इख़्तियार है लेकिन दबा के रख न सकूँगा नज़र को मैं ऐ तीर-ए-नाज़-ए-यार तवज्जोह से काम ले बे-रंग पा रहा हूँ नुक़ूश-ए-जिगर को मैं दिल के अलावा और मिरे पास कुछ नहीं ये दे के भेजता हूँ 'वफ़ा' नामा-बर को मैं