पहले तो जस्ता जस्ता भूल गया और फिर सारा रस्ता भूल गया बुन रहा था मैं जाल ख़्वाबों का बाहर आने का रस्ता भूल गया शहर-ए-दिल से चला गया इक शख़्स आईना इक शिकस्ता भूल गया हाँ ख़रीदा था इश्क़ का सौदा वो था महँगा कि सस्ता भूल गया मकतब-ए-इश्क़ आ गया हूँ मैं दिल-ए-नादाँ का बस्ता भूल गया हुस्न की बारगाह में ऐ 'सईद' तू भी था दस्त-बस्ता भूल गया