पहले तो ये लगा मुझे उस पार गिर गई फिर यूँ हुआ कि मुझ पे ही दीवार गिर गई सींचा लहू से उस का दिल-ए-दाग़-दार और मेरे बदन में ख़ून की मिक़दार गिर गई होने लगी है बर्क़ से मेरी मुमासलत कुछ इस लिहाज़ से मिरी रफ़्तार गिर गई उस की निगाह-ए-नाज़ से लश्कर भी कट गए फिर क्या कि मेरे हाथ से तलवार गिर गई फिर ज़िंदगी की मौज से कश्ती हुई तबाह जब दस्त-ए-ना-रसाई से पतवार गिर गई मैं भी मिरे निज़ाम से ऊपर चला गया वो भी हद-ए-निज़ाम से बेकार गिर गई