पहलू-ओ-पुश्त-ओ-सीना-ओ-रुख़्सार आइना है रज़्म-गाह-ए-हुस्न का ये चार आइना कफ़ आइना बर आइना रुख़्सार आइना है सर से पाँव तक वो सितमगार आइना हटता नहीं जो सामने से उस के रात दिन हम से सिवा है तालिब-ए-दीदार आइना ये तो मिरा रक़ीब है मैं मानता नहीं क्यूँ देखता है आप को हर बार आइना रुख़ का है अक्स दिल में तो रुख़ में है दिल का अक्स है आइने के सामने हर बार आइना ख़ल्वत में उस के नूर से आलम है तूर का हैं आब-ओ-ताब से दर-ओ-दीवार आइना ग़श खा के गिर पड़े न कहीं रोब-ए-हुस्न से इस वास्ते है पुश्त ब-दीवार आइना किस में है आब-ओ-ताब सिवा देख लीजिए इक बार उस का चेहरा और इक बार आइना रुख़ का और उस का हो गया इक बार फ़ैसला अच्छा हुआ कि मान गया हार आइना लबरेज़ है शुआ-ए-रुख़-ए-दिल-फ़रोज़ से ले आब-ए-हुस्न-ए-साग़र-ए-सरशार आइना 'परवीं' जहाँ में उस की झपकती नहीं पलक हैरत का आप करता है इक़रार आइना