पैदा किया है उड़ती हुई ख़ाक से मुझे निस्बत यही है सरसर-ए-सफ़्फ़ाक से मुझे अब तो असीर-ए-गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार हूँ मुद्दत हुई है उतरे हुए चाक से मुझे आएगा कोई खोलेगा बंद-ए-क़बा-ए-हर्फ़ देगा नजात काग़ज़ी पोशाक से मुझे दुनिया है इश्वा-साज़ तो मैं हूँ मकीन-ए-ज़ात ख़तरा नहीं है इस ज़न-ए-बेबाक से मुझे पर फड़फड़ा रहा हूँ बसीरत के दाम में कोई छुड़ाए कब्ज़ा-ए-इदराक से मुझे रह जाएगी लकीर लहू की ज़मीन पर ले जाइए न बाँध के फ़ितराक से मुझे मुझ से ज़मीन ख़ौफ़-ज़दा है 'रफ़ीक़-राज़' ये जानती है रब्त है अफ़्लाक से मुझे