ये अंधेरा जो अयाँ सुब्ह की तनवीर में है कुछ कमी ख़ून-ए-जिगर की अभी तस्वीर में है अहल-ए-तक़दीर ने सर रख दिया जिस के आगे आज वो उक़्दा मिरे नाख़ुन-ए-तदबीर में है रंग-ए-गुल रंग-ए-बुताँ रंग-ए-जबीन-ए-मेहनत जो हसीं रंग है शामिल मिरी तस्वीर में है मैं ने जिस ख़्वाब को आँखों में बसा रक्खा है तू भी ज़ालिम मिरे उस ख़्वाब की ता'बीर में है ले उड़ी मौज-ए-बहाराँ ये अलग है वर्ना आज भी पाँव मिरा ख़ाना-ए-ज़ंजीर में है वो मिरे पूछने को आए हैं सच-मुच 'अख़्तर' या कोई ख़्वाब-ए-हसीं मंज़िल-ए-ता'बीर में है