पैमाने ही क्या साग़र-ए-जम टूट रहे हैं By Ghazal << यूँ वो ब-हर लिहाज़ मिरे भ... कुछ ग़म नहीं कि घर की ये ... >> पैमाने ही क्या साग़र-ए-जम टूट रहे हैं इस दौर में सदियों के भरम टूट रहे हैं इक हम ही यगाना तो नहीं दहर में फिर भी हम पर ही ज़माने के सितम टूट रहे हैं रह रह के चमकते हैं यक़ीं के नए तेशे औहाम के बोसीदा सनम टूट रहे हैं Share on: