पैकर से हुस्न झाँकते बोला कि आइए दरिया के साथ आप भी सहरा बनाइए फिर यूँ हुआ हम उस में कहीं महव हो गए उस ने कहा था वक़्त को सकते में लाइए ऐ साकिनान-चश्म चलें सुल्ह कीजिए उठिए हमारे ख़्वाब को सीने लगाइए इस कासा-ए-हुरूफ़ की सुनता नहीं कोई दस्त-ए-दुआ' समेटिए और लौट जाइए वक़्त-ए-सफ़र ख़मोश हैं बोसा-किनान-लब उन से कलाम कीजिए उन को रुलाइए 'आरिश' किसी ने चाँद बनाना है चाक पर अपने बदन की मिट्टी ज़रा गूँध लाइए