तारीख़ के सफ़्हात में कोई नहीं हम-सर मिरा महव-ए-सफ़र है आज तक फेंका हुआ पत्थर मिरा हर सम्त सेहन-ए-ज़ात में फैले हुए साए मिरे बैठा है तख़्त-ए-फ़िक्र पर सिमटा हुआ दिलबर मिरा क्या ख़ुश-नसीबी है मिरी मैं एक तन्हा फ़ौज हूँ झूट और सच की जंग में काम आ गया लश्कर मिरा माहौल सब का एक है आँखें वही नज़रें वही सब से अलग राहें मिरी सब से जुदा मंज़र मिरा इक रंग-ए-इस्तिग़राक़ है इक निकहत-ए-आवारगी ठहरा हुआ गागर में है बहता हुआ सागर मिरा दुनिया करेगी एक दिन औराक़-गर्दानी मिरी याद आएगा अहबाब को गंजीना-ए-गौहर मिरा 'काविश' अना की क़ैद के दीवार-ओ-दर गिरने को हैं इक आलम-ए-असग़र में है इक आलम-ए-अकबर मिरा