पैकर-ए-नाज़ पे जब मौज-ए-हया चलती थी क़र्या-ए-जाँ में मोहब्बत की हवा चलती थी उन के कूचे से गुज़रता था उठाए हुए सर जज़्बा-ए-इश्क़ के हमराह अना चलती थी इक ज़माना भी चला साथ तो आगे आगे गर्द उड़ाती हुई इक मौज-ए-बला चलती थी पर्दा-ए-फ़िक्र पे हर आन चमकते थे नुजूम फ़र्श ता अर्श कोई माह-लिक़ा चलती थी मैं ही तन्हा न ख़राबों से गुज़रता था 'नईम' शाम ता सुब्ह सितारों की ज़िया चलती थी