क़ल्ब-ओ-जाँ में हुस्न की गहराइयाँ रह जाएँगी तू वो सूरज है तिरी परछाइयाँ रह जाएँगी अहल-ए-दिल को याद सदियों आएगा मेरा जुनूँ शोहरतें होंगी फ़ना रुस्वाइयाँ रह जाएँगी गुफ़्तुगू तुझ से करेंगी मेरी ग़ज़लें सुब्ह-ओ-शाम तेरी ख़ल्वत में मिरी तन्हाइयाँ रह जाएँगी मैं निकल जाऊँगा अपनी जुस्तुजू में एक दिन बज़्म-ए-याराँ में ख़याल-आराइयाँ रह जाएँगी दूर तक कोई न होगा नग़्मा-संजों में 'नईम' बस चमन में याद की पुरवाइयाँ रह जाएँगी