पलक झपकते में कटते हैं रोज़ ओ शब मह ओ साल जो फ़ासले थे मन ओ तू के दरमियाँ न रहे वफ़ा रिफ़ाक़त-ए-यक-उम्र कुछ नहीं लेकिन ये चाहता हूँ कि रोऊँ बहुत गले मिल के मसाफ़-ए-जीस्त में वो रन पड़ा है आज के दिन न मैं तुम्हारी तमन्ना हूँ और न तुम मेरे रफ़ीक़-ओ-यार कहाँ ऐ हिजाब-ए-तन्हाई बस अपने चेहरे को तकता हूँ आईना रख के हज़ार शोर-ए-तमाशा हो आँख बाज़ न हो वो ख़्वाब देख के बैठा हूँ उम्र भर के लिए