पलट के दीदा-ए-हैरान भी नहीं लाया मैं अपने साथ ये पहचान भी नहीं लाया सफ़र में रख़्त-ए-सफ़र से भी बोझ बढ़ता है इसी लिए तो मैं सामान भी नहीं लाया कहीं बदल न गया हो समुंदरों का मिज़ाज मह-ए-तमाम तो हैजान भी नहीं लाया किसी तरह नहीं लगता मिरे क़बीले का जो शख़्स ख़्वाब में इम्कान भी नहीं लाया तअ'ल्लुक़ात में कुछ हैं अभी नशेब-ओ-फ़राज़ मगर मैं ज़ेहन में कुछ ठान भी नहीं लाया अजब सराब-ज़दा था उफ़ुक़ में डूबता चाँद किसी के चेहरे पे मुस्कान भी नहीं लाया बिखर गया सर-ए-सहरा 'कफ़ील' और मैं देख सुकूत-ए-दश्त में तूफ़ान भी नहीं लाया