सूरज भड़के तो मंज़र शादाब सुलगते हैं

सूरज भड़के तो मंज़र शादाब सुलगते हैं
धूपें जब भी तेज़ हुई हैं ख़्वाब सुलगते हैं

कब आँगन पर वस्ल का बादल छाएगा जानाँ
सूखे हो कर आँखों के तालाब सुलगते हैं

प्यार की बारिश होती है जब ख़ुश्क चटानों पर
दिल धरती पर अन-देखे ज़हराब सुलगते हैं

रातों को जब यादों की बर्फ़ाब हवाएँ हों
तो पलकों पर अश्कों के गुहराब सुलगते हैं

जाग उठते हैं सोए हुए किरदार कहानी के
रात गए जब झीलों पर महताब सुलगते हैं

नफ़रत से ख़ुद अपनी आग में जलती हैं आँखें
प्यार से सब शैतानों के अलक़ाब सुलगते हैं

चाँद-नगर में याद आती है इक दोपहर 'कफ़ील'
ठंडे ठंडे मौसम में आ'साब सुलगते हैं


Don't have an account? Sign up

Forgot your password?

Error message here!

Error message here!

Hide Error message here!

Error message here!

OR
OR

Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link to create a new password.

Error message here!

Back to log-in

Close