पल-दो-पल है फिर ये सोना मिट्टी का कर दो मिरा तय्यार बिछौना मिट्टी का इक ठोकर से दोनों टूट के देखते हैं तू काँच का मैं हूँ खिलौना मिट्टी का तेरे शीश-महल की छत भी शीशे की मेरे घर का कोना कोना मिट्टी का कितने मअनी रखता है ज़रा ग़ौर तो कर कूज़ा-गर के हाथ में होना मिट्टी का आग का हँसना देख हवा के लहजे में पानी की आवाज़ में रोना मिट्टी का