पलकों की ओट में वो छुपा ले गया मुझे या'नी नज़र नज़र से बचा ले गया मुझे अब उस को अपनी हार कहूँ या कहूँ मैं जीत रूठा हुआ था मैं वो मना ले गया मुझे मुद्दत से एक रात भी अपनी नहीं हुई हर शाम कोई आया उठा ले गया मुझे हो वापसी अगर तो इन्हें रास्तों से हो जिन रास्तों से प्यार तिरा ले गया मुझे इक जान-दार लाश समझिए मिरा वजूद अब क्या धरा है कोई चुरा ले गया मुझे आवागमन की क़ैद से क्या छूटता कभी बस तेरा प्यार था जो छुड़ा ले गया मुझे धरती का ये सफ़र मिरा जिस दिन हुआ तमाम झोंका हवा का आया उड़ा ले गया मुझे तूफ़ाँ के बा'द मैं भी बहुत टूट सा गया दरिया फिर अपने रुख़ पे बहा ले गया मुझे मुद्दत के बा'द 'नूर' हँसी लब पे आई है वो अपना हम-ख़याल बना ले गया मुझे