पंछियों के रू-ब-रू क्या ज़िक्र-ए-नादारी करूँ पँख टूटे ही सही उड़ने की तय्यारी करूँ छोड़ जाऊँ अपने पीछे आलम-ए-हैरत तमाम मौत के पहलू में छुप कर शो'बदा-कारी करूँ नाचती है जुम्बिश-ए-अंगुश्त पर वो फ़ाहिशा ज़िंदगी कह कर जिसे ख़ुद से रिया-कारी करूँ सब्ज़ पौदों की तरफ़ बढ़ने लगी सरकश हवा उस के कपड़े नोच लूँ थोड़ी गुनाह-गारी करूँ नन्ही-मुन्नी कोंपलों को रंग-ओ-निकहत चाहिए कुछ हवा का ख़ौफ़ कुछ मौसम की दिलदारी करूँ गुनगुनाते शोख़ पंछी लहलहाती खेतियाँ नित-नए ख़्वाबों से नम आँखों में गुल-कारी करूँ मर्सिया अपना सुनाऊँ शहर-ए-ना-पुरसाँ के बीच पत्थरों से और क्या उम्मीद-ए-ग़म-ख़्वारी करूँ