वफ़ा-शिआ'र को तू ने ज़लील-ओ-ख़्वार किया जफ़ा-परस्त ये क्या शेवा इख़्तियार किया उठाए से न उठा दिल का पर्दा-ए-ग़फ़लत ख़ता हुई कि उन आँखों पे ए'तिबार किया निगाह-ए-मस्त-ए-हक़ीक़त तो दे चुकी थी जवाब मगर ये दिल ही था फिर उस ने होशियार किया न वो तड़प रही दिल में न वो रही सोज़िश इलाज क्या था ये क्या तू ने ग़म-गुसार किया दिखा के जल्वा-ए-बातिल की इक झलक ऐ हुस्न ख़ुदा के बंदा को नाहक़ गुनाहगार किया किसी के बस का दिल-ए-मुज़्तरिब न था लेकिन हमीं ने ख़ूगर-ए-अंदोह-ए-इंतिज़ार किया ख़याल-ए-इश्क़ ने रहमत से भी रखा महरूम ये क्या किया कि गुनाहों पे ए'तिबार किया कहे में आ के दिल-ए-ना-सुबूर के हम ने तमाम शब तिरे आने का इंतिज़ार किया तुम्हें तो ख़ाक में मिलना था मिल गए आख़िर जहाँ में शौक़ अबस उन को शर्मसार किया