पानी भरते जाते हैं दर्शन करते जाते हैं दिल में लगी तस्वीरों के रंग उतरते जाते हैं ख़ाली मश्कीज़ों के साथ आहें भरते जाते हैं धुँदली आँखों के पीछे ख़्वाब भी मरते जाते हैं ग़ज़ल की सीढ़ी पर चढ़ते डरते डरते जाते हैं जैसे प्याज़ के छिलके हों भेद उतरते जाते हैं अश्क अगरबत्ती और फूल क़ब्र पे धरते जाते हैं