इक अलाव जलता था क़िस्सा आँखें मलता था इक आसेब सा था कोई जिस का सिक्का चलता था उस के रौशन चेहरे से काला जादू टलता था दिल की कुंज कहानी में साँप सुनहरी पलता था छलनी थे सब मश्कीज़े ख़ेमा ख़ेमा जलता था गूँज कहीं रोती थी और रात का डेरा ढलता था नींदों की ढलवानों से एक ही ख़्वाब फिसलता था सुर्ख़ सिकुड़ते होंटों पर कोई हर्फ़ पिघलता था सारे शहर में डर 'तनवीर' पाँव पाँव चलता था