पानी में कंकर बरसाया करते थे वो दिन जब हम लम्हे ज़ाया करते थे होड़ हवा से अक्सर लगती थी अपनी अक्सर उस को धूल चटाया करते थे देख के हम को राहगुज़र मस़्काती थी पेड़ भी आगे बढ़ कर छाया करते थे धूप बटोरा करते थे हम सारा दिन शाम को बाँट के घर ले जाया करते थे आज घटा अफ़्सुर्दा करती है हम को हम बारिश में ख़ूब नहाया करते थे एक यही हम देखें सब ख़ामोशी से एक यही हम शोर मचाया करते थे 'सौरभ' शब थी एक वरक़ सादा जिस पर लिख लिख कर हम ख़्वाब मिटाया करते थे