पानी सियाने देते हैं क्या फूँक फूँक कर दिल सोज़-ए-ग़म ने ख़ाक किया फूँक फूँक कर छिड़काव आब-ए-तेग़ का है कू-ए-यार में पाँव इस ज़मीं पे रखिए ज़रा फूँक फूँक कर देखा न आँख-भर के नज़र के ख़याल से लेते हैं हम तो नाम तिरा फूँक फूँक कर होगा न साफ़ झूटी हवा-ख़्वाहियों से दिल यूँ दिल का कब ग़ुबार उड़ा फूँक फूँक कर बाद-ए-नफ़स से दाग़-ए-दिल-ए-सर्द जल उठे हम ने जिला दिया है दिया फूँक फूँक कर उल्टा है क्या इस आह-ए-शरर-बार का असर दिल ही बुझा दिया है मिरा फूँक फूँक कर पीरी में आएगी न कभी ताक़त-ए-शबाब ऐ पीर लाख पारे को खा फूँक फूँक कर शैताँ का धोका ज़ाहिद-ए-पुर-फ़न पे क्यूँ न हो पीता है छाछ दूध-जला फूँक फूँक कर आतिश-बयानी-ए-लब-ए-'कैफ़ी' ने बज़्म में दुश्मन के दिल को ख़ाक किया फूँक फूँक कर