पराई नींद में सोने का तजरबा कर के मैं ख़ुश नहीं हूँ तुझे ख़ुद में मुब्तला कर के उसूली तौर पे मर जाना चाहिए था मगर मुझे सुकून मिला है तुझे जुदा कर के ये क्यूँ कहा कि तुझे मुझ से प्यार हो जाए तड़प उठा हूँ तिरे हक़ में बद-दुआ' कर के मैं चाहता हूँ ख़रीदार पर ये खुल जाए नया नहीं हूँ रखा हूँ यहाँ नया कर के मैं जूतियों में भी बैठा हूँ पूरे मान के साथ किसी ने मुझ को बुलाया है इल्तिजा कर के बशर समझ के किया था ना यूँ नज़र-अंदाज़ ले मैं भी छोड़ रहा हूँ तुझे ख़ुदा कर के तो फिर वो रोते हुए मिन्नतें भी मानते हैं जो इंतिहा नहीं करते हैं इब्तिदा कर के बदल चुका है मिरा लम्स नफ़सियात उस की कि रख दिया है उसे मैं ने अन-छुआ कर के मना भी लूँगा गले भी लगाऊँगा मैं 'अली' अभी तो देख रहा हूँ उसे ख़फ़ा कर के