पर्दा जो रू-ए-यार से उट्ठा बराए-नाम देखा भी हम ने उस को तो देखा बराए-नाम उठा पहाड़ काट के दुनिया से कोहकन शीरीं का हो के रह गया शोहरा बराए-नाम अहल-ए-वफ़ा को आज कोई पूछता नहीं है भी अगर वफ़ा का तो चर्चा बराए-नाम मिलते ही आँख तूर पे ग़श खा के गिर पड़े देखा कलीम ने तिरा जल्वा बराए-नाम दो दिन बने हुए न हुए थे कि जल गया बुलबुल ने आशियाने को बरता बराए-नाम