पर्दा-ए-दर्द में आराम बटा करते हैं उस की दरगाह में इनआ'म बटा करते हैं बाब-ए-साक़ी पे इलाही मिरा सूरज डूबे शाम होते ही जहाँ जाम बटा करते हैं उस के दर पर मुझे ऐ गर्दिश-ए-क़िस्मत ले चल सब निकम्मों को जहाँ काम बटा करते हैं प्यास में दीदा-ए-दरवेश ने ता'लीम ये दी मय-कदे जाओ जहाँ जाम बटा करते हैं दिल-ए-मुज़्तर को तसल्ली वही देगा 'मुज़्तर' जिस की दरगाह में आराम बटा करते हैं