परेशानी नहीं जाती कि हैरानी नहीं जाती नहीं जाती तो हाँ तहरीर-ए-पेशानी नहीं जाती न हो इख़्लास जिस में नज़्र वो मानी नहीं जाती मोहब्बत की कभी बेकार क़ुर्बानी नहीं जाती मिरे हिस्से में तो आई नहीं जमईयत-ए-ख़ातिर तिरी ज़ुल्फ़ों की आख़िर क्यों परेशानी नहीं जाती अगर तुम सामने आओ तो क्या बरपा क़यामत हो कि इस पर्दे पे भी जलवों की ताबानी नहीं जाती जुनूँ-मशरब बयाबाँ में रहें या बाग़ में लेकिन ब-रंग-ए-गुल कहीं भी चाक-दामानी नहीं जाती तुम्हारी बात तो है और लेकिन हम ग़रीबों को जो मुश्किल पेश आती है ब-आसानी नहीं जाती रही हैं जिन से बातें मुद्दतों ख़ल्वत में जल्वत में अब उन से भी मिरी आवाज़ पहचानी नहीं जाती मसाइब की घटाओं में नहीं बुझते मिरे तेवर सवाद-ए-ज़ुल्म में चेहरा की ताबानी नहीं जाती निगाह-ए-मेहर उन की लाख पर्दा-पोश हो 'वासिफ़' गुनहगार-ए-मोहब्बत की पशेमानी नहीं जाती