परिंदे खेत में अब तक पड़ाव डाले हैं शिकारी आज तमाशा दिखाने वाले हैं हवाएँ तेज़ हैं आँधी ने पर निकाले हैं बहुत उदास पतंगें उड़ाने वाले हैं कमंद फेंक न देना ज़मीं की वुसअ'त पर नए जज़ीरे समुंदर ने फिर उछाले हैं चलो के देख लें 'ग़ालिब' के घर की दीवारें नई रुतों ने बयाबाँ में डेरे डाले हैं गली गली में चमकती है दर्द की ख़ुशबू हमारे ज़ख़्म महकते हुए उजाले हैं अब अपने आप से मिलने की जुस्तुजू क्या हो तुम्हारे शहर के सब आइने तो काले हैं जो लोग वाक़ई मुंसिफ़-मिज़ाज हैं 'अंजुम' सुना है आज वो चेहरे बदलने वाले हैं