परी-सूरत नज़ारा ढूँडते हैं मुसाफ़िर हैं सहारा ढूँडते हैं चराग़ों को ज़रूरत क्या पड़ी जो हवाओं का सहारा ढूँडते हैं सितारों सा कोई पलकों पे अपनी वो अश्कों में नज़ारा ढूँडते हैं पड़ी आदत हमें क्या हारने की जहाँ देखो ख़सारा ढूँडते हैं ये वस्ल-ए-शब ख़लिश से कम नहीं है गुज़र जाए किनारा ढूँडते हैं हुए जो मस्त 'साग़र' जाम पी कर हसीं दिलकश किनारा ढूँडते हैं